प्रदीप साहू, (ग्राम कवंलासा में आयोजित रात्रि कालीन आत्मज्ञान-संगोष्ठी में श्री सतपाल जी महाराज की शिष्या ने कहा)
जो अपने आप में सदा एक रस एवं जगत की परिस्थितियों के मध्य अपने को उच्च लक्ष्य के प्रति समर्पित रखने में सफल होते हैं, वही वास्तव में जीवन का मूल्य पहचान पाते हैं। हमें विकसित होना है, परंतु अपनी आत्मा की परिधि में, जिसे अपनी आत्मा का भान है वह कभी भी कुपित मान्यता लिए अपने आप को दूषित विचारों एवं ओछे प्रयोजनों हेतु समर्पित नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन की जागृति द्वारा दूसरों को प्रकाश पहुंचाने में समर्थ है, यही उसकी पहचान है एवं इसके लिए उसे कहीं अन्यंत्र भटकना नहीं पड़ता है, क्योंकि उसकी आत्मा स्वयं अपना मार्ग बनाने में समर्थ होती है। जिसकी आत्मा पर दाग नहीं लगे, जो सांसारिक परिस्थितियों के वशीभूत नहीं हुआ, जिसे की अपने अंतस की विराट संपदा का भान है एवं जो स्वयं में परिपूर्ण अनुभव कर आगे बढ़ता है, वही योगी है एवं उसे परम कल्याण का स्वर प्राप्त है।

उक्त आत्म कल्याणकारी विचार ग्राम कवंलासा में समाज सेवी व मानव उत्थान सेवा समिति के सक्रिय सदस्य गोपाल कढ़वाल, छगनलाल, राधेश्याम, बलराम, नंदराम व संतोष कढ़वाल की स्व. माताश्री रामप्यारी बाई कड़वाल की स्मृति में आयोजित रात्रि कालीन आत्मज्ञान-संगोष्ठी व सत्संग भजन समारोह के दौरान श्री सतपाल महाराज की शिष्या रेणुका बाई जी ने व्यक्त किये। आसपास क्षेत्र से बड़ी संख्या में उपस्थित अध्यात्म प्रेमियों को संबोधित करते हुए संत श्री ने कहा जब तक भीतर से हम परिपूर्ण नहीं होते, तब तक जगत का कोई भी प्रयोजन हमें सार्थकता नहीं दे सकता, यही आत्मा का सिद्धांत है। जो इसकी पूर्ति कर लेता है, उसे जीवन में कभी सफलता की कमी नहीं होती, क्योंकि अपने भीतरी केंद्र से संचालित होना ही सफलता है। जीवन का ध्येय यदि देखा जाए तो वह आत्मोत्कर्ष है, इसके लिए किसी विशेष प्रक्रिया की नहीं, बल्कि स्वयं के आत्म-विगलन एवं संपूर्णता में आत्मभाव की प्राप्ति होने की आवश्यकता होती है।
इस मौके पर उपस्थित संत श्री प्रभावती बाई जी ने ज्ञान-भक्ति, वैराग्य से ओतप्रोत मधुर भजन — रे मन ये दो दिन का मेला रहेगा, कायम न जग का झमेला रहेगा…. की सुंदर प्रस्तुति देते हुए कहा भगवान उन्हीं पर कृपा करते हैं, जो पवित्रता के साथ अपना कर्म करते हैं। आध्यात्मिक सोच अपने आसपास विश्वास की जोत जगाता है। सच में,प्यार में, व्यवस्था में,कर्म में,लक्ष्य में जहां विश्वास होता है,वहां आशा जीवन बन जाती है। जब कभी व्यक्ति के भीतर द्वंद्व चलता है तो जीवन का खोखलापन उजागर होने लगता है। अक्सर आधे-अधूरे मन और कमजोर निष्ठा से हम कोई कार्य करते हैं तो उसमें सफलता संदिग्ध हो जाती है। फिर हम झटपट अदृश्य शक्ति से रिश्ता नाता गढ़ने लगते हैं। भीतरी शक्ति को बाहर निकाल कर असंभव को भी संभव किया जा सकता है। हम आज से ही अपना चिंतन, विचार, व्यवहार, कर्म और भाव बदलना शुरू करें। निर्गुण भजन गायक कलाकारों ने देर रात्रि तक मधुर भजनों की प्रस्तुति दी।